Sheikh Hasina China Rohingya: भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत दौरे से ठीक 18 दिन बाद चीन पहुंची हैं. उनकी चीन यात्रा पर भारत की भी पैनी नजर थी. शेख हसीना ने शी जिनपिंग से मुलाकात करने के बाद करीब 21 MOU साइन किए. दोनों देशों ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, इंफ्रास्ट्रक्चर, फाइनेशियल असिस्टेंस आदि मुद्दे के आलावा भारत के लिहाज से खास मुद्दे रोहिंग्या पर भी चर्चा की. दोनों नेताओं की ये मुलाकात चीन और बांग्लादेश के राजनीयिक रिश्तों के 50 साल पूरे होने से कुछ महीने पहले ही हुई है. बुधवार की बैठक के दौरान शी ने हसीना से कहा कि चीन और बांग्लादेश अच्छे पड़ोसी हैं जो एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं और हजारों सालों से उनके बीच दोस्ताना संबंध हैं.
इस मुलाकात में शी ने दोनों देश के रिश्ते का ग्लोबल साउथ पर पड़ने वाले प्रभाव पर जोर दिया है. कई भारतीय मीडिया आउटलेट्स ने इस यात्रा पर चिंता जताई है, लेकिन जानकारों का मानना है कि ये यात्रा चीन-बांग्लादेश संबंधों के विकास पर फोकस है और इससे किसी तीसरे पक्ष पर असर मुश्किल है.
भारत बांग्लादेश से करीब 4 हजार किलोमीटर का बॉर्डर साझा करता है और इसकी सीमा भारत के 5 राज्यों की सीमा से मिलती है. ऐसे में चीन की यहां मौजूदगी बढ़ना भारत के लिए चिंता का सबब बन सकती है. क्योंकि कश्मीर बॉर्डर पर चीन अपने दखल से पहले ही कई समस्या खड़ी कर चुका है.
बांग्लादेश से दोस्ती चीन के लिए रणनीतिक तौर पर भी फायदेमंद साबित हो सकती है. वह किसी भी तरह बांग्लादेश को अपने पाले में कर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करेगा. इससे पहले चीन श्रीलंका के साथ भी ऐसा करने की कोशिश कर चुका है. चीन की उत्सुकता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब पीएम शेख हसीना बीजिंग लैंड की तो उनका रेड कारपेट से स्वागत हुआ और खुद चीनी प्रधानमंत्री Li Qiang उनको रिसीव करने पहुंचे.
शी ने उठाया रोहिंग्या का मुद्दा
बांग्लादेश के विदेश मंत्री हसन मेहमूद ने बताया कि शी ने बैठक के दौरान रोहिंग्या मुद्दा भी उठाया है और इसको अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साथ मिलके हल करने की सहमति जताई है. शी ने हसीना से कहा, “मुझे पता है कि आपने म्यांमार से विस्थापित हुए लाखों रोहिंग्याओं को शरण दी है. यह आपके लिए एक अहम मुद्दा है, हम इसे सुलझाने में आपकी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे.” महमूद ने बताया कि शी ने विश्वास दिलाया है कि चीन रोहिंग्या संकट को सुलझाने के लिए म्यांमार सरकार और यहां तक कि जरूरत पड़ने पर अराकान सेना के साथ भी बातचीत करेगी.
बता दें कि म्यांमार इस वक्त गृह युद्ध की चपैट में है, जहां म्यांमार सेना और राखाइन इलाके के सैन्य गुट अराकान सेना के बीच संघर्ष जारी है. अराकान सेना ने म्यांमार के कई क्षेत्रों पर कब्जा किया हुआ है और वे म्यांमार की केन्द्रीय सरकार में ऑटोनोमी लेना चाहते हैं.
कौन हैं रोहिंग्या जो भारत के लिए भी बड़ा मुद्दा?
अगस्त 2017 में म्यांमार की पूर्व काउंसलर आंग सान सू के नेतृत्व वाली सेना ने रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ एक सैन्य अभियान शुरू किया. जिसको यूनाइटे नेशन ने अपनी रिपोर्ट में ‘एथनिक क्लींजिंग’ का नाम दिया है. म्यांमार सेना के आक्रमणकारी अभियान की वजह से लाखों रोहिंग्याओं को अपना सब कुछ छोड़ समुद्र या पैदल मार्ग से देश से भागना पड़ा. एक रिपोर्ट के मुताबिक आज लगभग 5 लाख रोहिंग्या अपने घरों को छोड़ बांग्लादेश, भारत और दूसरे देशों में अस्थायी कैंपों में रह रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने रोहिंग्याओं को दुनिया के सबसे प्रताड़ित और भेदभाव का शिकार होने वालों में से एक समुदाय बताया है.
भारत म्यांमार के साथ 1600 किलोमीटर का बॉर्डर साझा करता है और वहां कि अस्थरता का असर भारत में भी देखने मिलता है. अगर चीन और बांग्लादेश मिलकर रोहिंग्याओं के मसले को हल करने की कोशिश करते हैं तो ये भारत के लिए भी अच्छा साबित होगा. क्योंकि 2017 के रोहिंग्या नरसंहार के बाद हाजारों रोहिंग्या नागरिकों ने भारत में भी पनाह ली है. जिनको भारत से निकालने की बात राजनीतिक मंचों से होती रही है. रोहिंग्या समुदाय को भारत में शरण देने का विरोध करने वाले लोग ‘प्रताड़ित रोहिंग्याओं’ को भारत की सुरक्षा के लिए खतरा मानता हैं और उन्हें वापस भेजने की वकालत करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का क्या है पक्ष?
मार्च 2024 में रोहिंग्या रिफ्यूजी को वापस भेजने वाले मणिपुर सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि शरणार्थियों के जीवन की सुरक्षा एक संवैधानिक अधिकार है. उन्हें गैर-वापसी नीति के तहत संरक्षित किया जाता है, जिसके मुताबिक किसी शरणार्थी को शारीरिक या यौन उत्पीड़न के डर से उस जगह वापस नहीं भेजा जा सकता है, जहां से वह भाग कर आएं हैं.
रोहिंग्या समुदाय में मुस्लिम ही नहीं मयांमार से भागकर आए हिंदु भी शामिल हैं. लेकिन केंद्र सरकार द्वारा लाए गए CAA से भी म्यांमार को बाहर रखा गया है. जबकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रवधान है.
किन क्षेत्रों में हुए समझौते?
शी ने पीएम हसीना से वादा किया है कि चीन बांग्लादेश को फाइनेशियल सपोर्ट करेगा जिसमें बिना ब्याज के लौन के साथ तीन तरीकों की फाइनेंस ग्रांट शामिल होंगी. जिन MOU पर दोनों देशों ने साइन किए है उनमें डिजिटल अर्थव्यवस्था में निवेश, बैंकिंग और बीमा, बांग्लादेश से चीन को ताजे आमों का निर्यात, इंफ्रस्ट्रक्चर, ग्रीन एंड लो कॉर्बन डेवलपमेंट और बाढ़ के वक्त डेवलपमेंट की साइंसटिफिक जानकारी शामिल हैं.
इसके अलावा दोनों नेताओं ने एशिया और विश्व से जुड़े कई मुद्दों पर भी चर्चा की और आपसी सहयोग से उनको हल करने की कोशिश पर सहमति जताई है.
President Xi Jinping met with Prime Minister Sheikh Hasina of Bangladesh.
— Hua Chunying 华春莹 (@SpokespersonCHN) July 10, 2024
China cherishes the profound friendship forged by leaders of the older generation of the two countries. We will take the 50th anniversary of China-Bangladesh diplomatic ties to be marked next year as an… pic.twitter.com/thQKPQsX21