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CM Arvind Kejriwal News:चंपई या लालू मॉडल... केजरीवाल CM चुनने के लिए किस रास्ते चलेंगे?

CM Arvind Kejriwal News: संकट के वक्त अब तक मुख्यमंत्री चुनने का लालू और चंपई मॉडल फेल साबित हुआ है. लालू मॉडल में पार्टी के भीतर ही बगावत हो गई तो वहीं चंपई

CM Arvind Kejriwal News: दिल्ली का राजनीति एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की संभावनाओं के बीच, अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे अपने उत्तराधिकारी का चयन कैसे करेंगे। इतिहास में संकट के समय मुख्यमंत्रियों ने अपने उत्तराधिकारी के चयन के लिए दो प्रमुख मॉडल अपनाए हैं: लालू यादव का और चंपई सोरेन का। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल कौन सा मॉडल अपनाएंगे, या क्या वे नया तरीका खोजेंगे।

1. लालू यादव का सीएम चयन मॉडल

1997 में जब लालू यादव चारा घोटाले के मामले में फंस गए, तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। यह पहला मौका था जब किसी नेता ने अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री का पद सौंपा। हालांकि, लालू का यह निर्णय पार्टी के भीतर बड़ी असंतोष का कारण बना और बिहार की राजनीति में उथल-पुथल मच गई। साल 2000 के चुनाव में उनकी पार्टी किसी तरह सत्ता में तो आई, लेकिन इसके बाद पार्टी की राजनीतिक स्थिति कमजोर हो गई। आज तक आरजेडी का कोई मुख्यमंत्री बिहार में नहीं बन पाया। इस मॉडल का फेल होना एक संकेत हो सकता है कि केजरीवाल को सावधानीपूर्वक निर्णय लेना होगा।

2. चंपई सोरेन का सीएम चयन मॉडल

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद, उन्होंने चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन जब हेमंत सोरेन वापस आए, तो चंपई को कुर्सी से हटा दिया गया और चंपई बीजेपी में शामिल हो गए। यह मॉडल भी असफल रहा क्योंकि चुने हुए मुख्यमंत्री ने ही बगावत कर दी। इसी तरह, नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया था, लेकिन मांझी भी कुछ ही महीनों में बागी हो गए। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि जब एक नेता अपने उत्तराधिकारी का चयन करता है, तो उसे राजनीतिक स्थिरता की गारंटी नहीं मिलती।

अरविंद केजरीवाल की चुनौतियाँ

1. पार्टी और सार्वजनिक छवि: अगर केजरीवाल लालू के मॉडल की तरह किसी करीबी को मुख्यमंत्री बनाते हैं, तो यह उनके खिलाफ पार्टी और सार्वजनिक स्तर पर नाराजगी का कारण बन सकता है। इसके अलावा, वर्तमान में उनकी पत्नी सुनीता के पास विधायक का पद नहीं है, जिससे कानूनी अड़चने आ सकती हैं।

2. पार्टी में असंतोष: कई नेताओं का सीएम पद के लिए दावा है। अगर कोई एक मंत्री को चुना जाता है, तो बाकी मंत्री उसकी नेतृत्व को मानने में असहमत हो सकते हैं। दिल्ली में चुनावों की नजदीकी के कारण, पार्टी में टूट का खतरा भी बढ़ सकता है।

3. जाति और क्षेत्रीय समीकरण: अगर केजरीवाल किसी एक जाति या क्षेत्र के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाते हैं, तो इससे अन्य जातियों और क्षेत्रों में असंतोष हो सकता है। उनके रहते दिल्ली में जाति और क्षेत्रीय मुद्दे कम हो गए थे, लेकिन नए मुख्यमंत्री के चयन के साथ ये मुद्दे फिर उभर सकते हैं।

सकारात्मक पहलू और संभावनाएं

1. पार्टी की स्थिरता: दिल्ली शराब घोटाले के बावजूद पार्टी में कोई बड़ी टूट नहीं हुई। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने इस पर ध्यान भी दिया है। इसका संकेत है कि पार्टी की संरचना और नेतृत्व में अभी भी स्थिरता है।

2. चुनाव की समय सीमा: दिल्ली में विधानसभा चुनाव 5 महीने बाद होने हैं। एक महीने पहले आचार संहिता लागू हो जाएगी, जिससे नए मुख्यमंत्री के पास समय की कमी हो सकती है। इसके बावजूद, केजरीवाल ने स्पष्ट किया है कि सरकार बनने के बाद वे खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लौटेंगे।

निष्कर्ष: अरविंद केजरीवाल के लिए नए मुख्यमंत्री का चयन करना एक जटिल प्रक्रिया होगी। वह पहले ही बता चुके हैं कि वे स्वयं फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे, लेकिन इस बीच नए नेतृत्व का चयन उनकी राजनीतिक रणनीति का अहम हिस्सा होगा। लालू और चंपई मॉडल की असफलताओं को देखते हुए, यह देखना होगा कि केजरीवाल किस तरह का तरीका अपनाते हैं और किस प्रकार का नेतृत्व पार्टी और जनता की उम्मीदों को पूरा कर पाता है।

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