Ramdevra Temple : बाबा रामदेव जी, जिन्हें हिन्दू और मुस्लिम समुदाय में समान रूप से श्रद्धा के साथ याद किया जाता है, का जन्म 1409 ईस्वी में हुआ था। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, यह दिन भाद्रपद शुक्ल बीज (भादवा सुदी बीज) के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म राजस्थान के रुणिचा में, शासक अजमल जी और माता मैनादे के घर हुआ। अजमल जी का कोई संतान नहीं था और वे द्वारकाधीश की भक्ति में लीन रहते थे। भगवान द्वारकाधीश ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर वचन दिया कि वे स्वयं उनके घर पुत्र के रूप में अवतार लेंगे। इस प्रकार बाबा रामदेव जी का जन्म हुआ।
बाबा रामदेव जी का बचपन
बाबा रामदेव जी का बचपन साधारण नहीं था। उनके जन्म के समय महल में अद्भुत घटनाएँ घटीं—जल के बर्तन दूध में बदल गए, घंटियाँ स्वतः बजने लगीं, और आकाशवाणी हुई। बाबा रामदेव जी के बचपन से ही चमत्कारी लीलाएँ प्रकट होने लगीं। एक घटना के अनुसार, जब उनकी माँ ने दूध उबलते देखा, तो बाबा रामदेव जी ने मात्र हाथ के इशारे से दूध को थमा दिया। उनकी ये चमत्कारी लीलाएँ उन्हें साधारण मानव से अलग बनाती थीं।
रामसा पीर: सामाजिक न्याय का प्रतीक
बाबा रामदेव जी का जीवन केवल चमत्कारों तक सीमित नहीं था। उन्होंने समाज में व्याप्त छुआछूत और भेदभाव का विरोध किया। उन्होंने दलित समुदाय की एक बालिका, डालीबाई को अपनी धर्म बहन बनाया, जो उस समय के सामाजिक परिवेश में एक क्रांतिकारी कदम था। उनके इन कार्यों के कारण वे हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में समान रूप से पूजनीय बने और ‘रामसा पीर’ के रूप में विख्यात हुए।
भैरव राक्षस वध
बाबा रामदेव जी का अवतार एक महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिए हुआ था—भैरव नामक राक्षस के आतंक से जनता को मुक्ति दिलाना। भैरव राक्षस पोकरण के आसपास के लोगों को सताता था और उन्हें मार डालता था। एक दिन, बाबा रामदेव जी ने अपनी ईश्वरीय शक्ति से इस दैत्य का अंत कर दिया। इससे पूरे क्षेत्र में शांति का वातावरण स्थापित हुआ।
बाबा रामदेव जी का विवाह
सन 1426 में बाबा रामदेव जी का विवाह अमरकोट के राजा दलपत जी की पुत्री नैतलदे से हुआ। नैतलदे जन्म से विकलांग थीं, लेकिन बाबा रामदेव जी ने अपने चमत्कार से उन्हें ठीक कर दिया और वे विवाह के समय अपने पैरों पर चल सकीं। इस चमत्कार ने उन्हें और भी प्रसिद्ध बना दिया।
24 चमत्कार (पर्चे)
बाबा रामदेव जी के जीवन में 24 प्रमुख चमत्कारों का उल्लेख मिलता है, जिन्हें "पर्चे" कहा जाता है। इनमें से पहला पर्चा उन्होंने अपनी माँ मैनादे को झूले में झूलते हुए दिया था। उनके अन्य चमत्कारों में भैरव राक्षस का वध, सेठ बोहितराज की डूबती नाव को बचाना, और अपनी बहन सुगना को सांप के डसने से बचाना शामिल हैं। ये चमत्कार उनकी दिव्यता और सामाजिक समर्पण को दर्शाते हैं।
समाधि और रामदेवरा मेला
बाबा रामदेव जी ने मात्र तैंतीस वर्ष की आयु में समाधि लेने का निर्णय लिया। समाधि लेने से पूर्व उन्होंने अपने भक्तों से कहा कि वे सदैव उनके साथ रहेंगे। उनकी समाधि जैसलमेर के रामदेवरा में स्थित है, जो आज एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन चुका है। भादवा सुदी बीज के दिन यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु बाबा के दर्शन करने आते हैं। यह स्थान हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है, जहाँ सभी धर्मों के लोग अपने सिर झुकाते हैं।
सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक
बाबा रामदेव जी का जीवन सांप्रदायिक सौहार्द्र और समानता का प्रतीक था। मुस्लिम समुदाय उन्हें ‘रामसा पीर’ के नाम से पूजता है। हर साल लाखों की संख्या में लोग रामदेवरा मेले में शामिल होते हैं, जिसमें हिंदू-मुस्लिम दोनों ही भाग लेते हैं। बाबा रामदेव जी ने अपने जीवनकाल में जो प्रेम, समानता और एकता का संदेश दिया, वह आज भी समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
इस प्रकार, बाबा रामदेव जी का जीवन न केवल चमत्कारों से भरा था, बल्कि समाज सुधार और मानवीयता की उच्चतम मिसाल भी था। उनका संदेश आज भी लोगों को प्रेरित करता है और उनकी समाधि पर हर साल आने वाले लाखों भक्त उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।