UP Elections 2024: उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की 13 सीटों पर हो रहे चुनाव के जरिए आगामी लोकसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जा रही है. बीजेपी ने अपने तीन सहयोगी दल-आरएलडी, सुभासपा और अपना दल (एस) को एक-एक एमएलसी सीट देकर राजनीतिक समीकरण साधने का दांव चला है. वहीं, सपा ने राज्यसभा चुनाव से सबक लेते हुए तीन एमएलसी सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया, जिसमें दो पिछड़ा वर्ग और एक मुस्लिम समुदाय से हो सकता है. सपा ने सामाजिक समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार उतारे. अखिलेश यादव एमएलसी चुनाव के जरिए अपनी आजमगढ़ सीट पर दोबारा से कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे हैं.
सपा ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन करके लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया, लेकिन लगता है कि अखिलेश यादव 2024 में जीत के लिए कॉन्फिडेंस नहीं हैं. 2019 में बसपा-आरएलडी के साथ गठबंधन के बाद भी ‘यादव परिवार’ की फिरोजबाद, बदायूं और कन्नौज सीट सपा हार गई थी. कन्नौज से अखिलेश की पत्नि डिंपल को करारी मात खानी पड़ी थी. उपचुनाव में आजमगढ़ सीट भी सपा ने गंवा दी है. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रिक्त हुई मैनपुरी सीट से डिंपल संसद पहुंची हैं और दोबारा से चुनावी मैदान में उतरी हैं जबकि आजमगढ़ और कन्नौज से अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने की चर्चा है. आजमगढ़ सीट पर उतरने से पहले पहले अखिलेश उस सीट के सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुटे हैं.
मुस्लिम,यादव वोट पर सपा की नजर
अखिलेश यादव की तरफ से एमएलसी चुनाव के लिए तीन प्रत्याशियों को हरी झंडी मिली है, जिनमें बलराम यादव, किरणपाल कश्यप और शाह आलाम उर्फ गुड्डू जमाली का नाम शामिल है. बलराम यादव और गुड्डू जमाली आजमगढ़ जिले से आते हैं जबकि किरणपाल कश्यप पश्चिमी यूपी से आते हैं. माना जा रहा है कि गुड्डू जमाली और बलराम यादव के जरिए आजमगढ़ सीट पर सियासी बैलेंस बनाने के साथ-साथ बीजेपी के हाथ से सीट छीनने का प्लान है. यही वजह है कि अखिलेश ने नामांकन के अंतिम दिन आलोक शाक्य और नरेश उत्तम को दरकिनार कर बलराम यादव, गुड्डू जमाली और किरणपाल कश्यप के चेहरों पर दांव लगाया है.
उत्तर प्रदेश में विधायकों की संख्या के हिसाब से 13 एमएलसी सीटों में से 10 बीजेपी और 3 सीटें सपा जीत सकती है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बार PDA के फ़ार्मूले पर दांव लगाने की तैयारी में हैं. इसीलिए ओबीसी समाज से दो और मुस्लिम कोटे से एक नेता को एमएलसी बनाने का फैसला किया है, जिसके लिए उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से सलाह-मशविरा करके नाम फाइनल किए. पहले आलोक शाक्य का नाम रेस में चल रहा था, लेकिन बाद में सपा ने बलराम यादव के नाम को हरी झंडी दे दी.
सपा के लिए आजमगढ़ सीट अहम
सपा ने भले ही एमएलसी चुनाव के जरिए 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सियासी संदेश देने की कोशिश की हो, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो गुड्डू जमाली और बलराम यादव के उम्मीदवार बनाने के पीछे आजमगढ़ लोकसभा सीट से जोड़कर देखा जा रहा है. आजमगढ़ सपा का मजबूत गढ़ रहा है, मुलायम सिंह यादव सांसद रहे हैं और उसके बाद 2019 में अखिलेश यादव सांसद चुने गए थे. 2022 में अखिलेश यादव ने विधायक बनने के बाद आजमगढ़ सीट से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद धर्मेंद्र यादव उपचुनाव में उतरे, लेकिन बीजेपी के दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ जीतने में सफल रहे.
2019 में गुड्डू जमाली ने बिगाड़ा खेल
आजमगढ़ में सपा का खेल बिगाड़ने वाले बसपा से चुनाव लड़ने वाले गुड्डू जमाली थे. जमाली बसपा से चुनावी मैदान में उतरे थे, जिसके चलते मुस्लिम समुदाय का करीब 40 फीसदी वोट उन्हें मिल गया था. एक कहावत है,’दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है.’ अखिलेश भी ठीक वैसा ही कर रहे हैं. आजमगढ़ लोकसभा 2024 के चुनाव में बीजेपी से सपा हिसाब बराबर करना चाहती है. इसीलिए बलराम यादव और गुड्डू जमाली दोनों को ही एमएलसी बनाने का दांव चला है ताकि आजमगढ़ में यादव और मुस्लिम दोनों ही वोट बैंक को सियासी संदेश दिया जा सके.
आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी के दिनेश लाल निरहुआ को 312768 वोट मिले थे, जबकि सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव को 304089 वोट मिले थे. वहीं, बसपा के गुड्डू जमाली 266210 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थे. अगर बसपा से गुड्डू जमाली चुनावी मैदान में न उतरते तो धर्मेंद्र यादव की जीत तय थी, क्योंकि उनके चुनाव मैदान में उतरने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो गया. इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला और धर्मेद्र यादव को मात खानी पड़ गई. आजमगढ़ सीट से अखिलेश यादव चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, जिसके लिए पार्टी ने पूरी तैयारी कर रखी है.
अखिलेश यादव लड़ेंगे आजमगढ़ से चुनाव
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर सपा ने भले ही अपना प्रत्याशी घोषित न किया हो, लेकिन अखिलेश का चुनाव लड़ना तय है. आजमगढ़ सपा के लिए सबसे सेफ सीट समझी जाती है, जिस वजह से पार्टी हारी, अब उस वजह को ख़त्म करने का दांव सपा ने चला है. गुड्डू जमाली की सपा में वापसी और एमएलसी का दांव चला है. इतना ही नहीं बलराम यादव आजमगढ़ के दिग्गज नेता माने जाते हैं और उनके बेटे संग्राम यादव सपा से विधायक हैं.
आजमगढ़ लोकसभा सीट के सियासी समीकरण को देखें तो सबसे ज्यादा करीब साढे़ चार लाख यादव वोट हैं. मुस्लिम और दलित तीन-तीन लाख वोटर हैं जबकि शेष अन्य जातियों के मतदाता हैं. ओबीसी में यादव समाज जिस तरह से सपा का कोरवोटर है तो वहीं दलितों में बसपा का मूल वोटबैंक माने जाने वाले जाटवों की संख्या अधिक है. सपा यादव और मुस्लिम दोनों ही वोटबैंक को जोड़े रखना चाहती है, क्योंकि अखिलेश खुद चुनावी मैदान में उतरना चाहते हैं. ऐसे में पार्टी किसी तरह का कोई जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहती है. इसीलिए जमाली और बलराम यादव को एमएलसी बनाने का फैसला करके अखिलेश यादव ने अपने दुर्ग को दुरुस्त करने की स्ट्रेटेजी बनाई है.
समाजवादी पार्टी की तरफ़ से किरणपाल कश्यप एमएलसी के तीसरे उम्मीदवार होंगे. पश्चिमी यूपी के शामली जिले के थानाभवन से विधायक भी रह चुके हैं. यूपी सरकार में मंत्री रहे किरणपाल अभी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव भी हैं. यूपी के पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी यूपी तक कई इलाक़ों में कश्यप वोटर हार जीत तय करते हैं. इसी वजह से बीजेपी ने यूपी में संजय निषाद की पार्टी से गठबंधन किया है. सपा ने किरणपाल कश्यप को आगे करके पश्चिमी यूपी के मुजफ्फनगर सीट से लेकर कैराना लोकसभा सीट पर सियासी संदेश देने का दांव चला है.